रसराज जिरही. .. रसराज २९५ परकीया-कृष्णाभिसारिका-उदाहरण उमडि-घमडि. दिग-मंडलन मंडि रहे, __झूमि-झूमि बादर कुहू की निसि कारी मैं ; अंगनि मैं कीनो मृगमद-अंगराग तैसो, आनन ओढ़ाय लीनो स्याम रंग सारी मैं । 'मतिराम' सुकबि मेचक रुचि राजि रही, .. आभरन राजी मरकत मनिबारी मैं । मोहन छबीले को मिलन चली ऐसी छबि, छाँह लौं छबीली छबि छाजत अँध्यारी मैं ॥१९७।। स्याम बसन मैं स्याम निसि दूरी न तिय की देह ।। पहुँचाई चहुँ ओर घिर भौंर-भीर पिय-गेह ॥१९८॥ चंद्राभिसारिका-उदाहरण अंगन मैं चंदन चढ़ाय घनसार सेत, . सारी छीर-फेन की-सी आभा उफनाति है; राजत रुचिर रुचि' मोतिन के आभरन, कुसुम-कलित केस सोभा सरसाति है। कबि 'मतिराम' प्रानप्यारे सौं मिलन जात, करि के मनोरथनि मृदु मुसकाति है; होति न लखाई निसि-चंद की उज्यारी मुख,
- चंद की उज्यारी तन छाँहौ छिपि जाति है ॥१९९।।
मलिन करी छबि जोन्ह की तन छबि सौं बलि जाउँ।.. क्यों जैहों पिय पै सखी, लखि जैहै सब गाउँ ॥२०॥ १ मिलि, २ सुचि, ३ चलि, ४ को जैहैं । __ छं० नं० १९७ मृगमद=कस्तूरी। मेचक=काला। मरकत= नीलम । छं० नं० १९९ रुचि=दीप्ति ।