मदु मुसकाय परजंक में निसंक जाय,
__अंक भरि आनँद अधर-सुधा' चाखियो;
नेवर की झनक-भनक राखि प्यारी आजु,
रसना की झनक तनक रस राखियो ।।१६८।।
डीठि बचाय सखीन की केलि-भवन में जाय ।
पौढ़ि रहे छिन सेज में तिय आनँद अधिकाय ॥१६९।।
___मध्या-बासकसज्जा-उदाहरण
केसरि, कनक कहा? चंपक-बनक कहा ?
दामिनी यों दुरि जात देह की दमक तें;
कबि 'मतिराम' लौने लोचन लपेट लाज,
____ अरुन कपोल काम तेज की तमक तें।
पग के धरत कल किंकिनी-नूपुर बजे,
बिछिया भनक उठै एक ही झमक तें;
नाह-सुख चाहि चित औचक हँसति, चौंक
परै चंदमुखी निज चौका की चमक तें ॥१७०॥
निसि नियराति निहारियति सौति-बदन-अरबिंद।
सखी ! एक यह देखिए तेरो आनन-इंदु ॥१७१॥
प्रौढ़ा-बासकसज्जा-उदाहरण
वारनि धूपि अँगारनि धूप के धूम-अँध्यारी पसारी महा है;
आनन-चंद समान उगो मद् मंद हँसी जनो जोन्ह-छटा है।
१ रस, २ तिय, ३ अति, ४ जहाँ, ५ नेवर, ६ जमक, ७ उयो ।
नेवर पैरों के नपुर। रसना=बुंघुरूदार करधनी। 'रसना की
झनक' रखने का शिक्षा से यह अभिप्राय है कि पर्यंक पर प्रीतम के साथ
केलि करने में प्रवृत्त होना। छं० नं० १७० दामिनी यों दूरि दमक
त=शरीर की दीप्ति के सामने बिजली छिप जाती है। चौका=आगे
के दाँत जिनमें चमकीली वस्तु जड़ी रहती है । छ०नं० १७२ बारनि धूपि
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मतिराम-ग्रंथावली