पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/२८४

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२८० मतिराम-ग्रंथावली कलहांतरिता-लक्षण कह्यो न मान कंत को पुनि पीछे पछिताय । कलहंतरिता नायका ताहि कहत कबिराय ।।१३३॥ मुग्धा-कलहांतरिता-उदाहरण गौने की चुनरी वैसिय है दुलही अबही ते ढिठाई बगारी'; वेऊ मनावन आए हैं आपन हाथ सौं जात न पाग सँवारी । पाँइ परे ‘मति राम' लला मनुहारि करी कर जोरि हहारी; आप ही मान्यो, मनायो न कान्ह को, आप ही खात न पान पियारी। omimension inclipinitam mamisamas MARAcation- १३४॥ n Mara । apan आई गौने कालि ही सीखी कहा सयान । अबहीं तें रूसन लगी, अबहीं तै पछितान ।।१३५।। __ मध्या-कलहांतरिता-उदाहरण पाँयन आनि परे तो परे रहे केती करी मनुहारि न झेली; मान्यो मनायो न मैं 'मतिराम' गुमान मैं ऐसी भई अलबेली। प्यारो गयो दुखमान कहूँ अब कैसे रहूँ यहि राति अकेली; आप तेल्याउ मनाय कन्हाई को मेरो न लीजियो नाम सहेली। १३६॥ जो त कहै तो राधिका, पियहि मनाबन जाउँ । वहाँ कहौंगी जाय के सखी तिहारो नाँउ ।।१३७॥ ठाढ़े भए कर जोरि के आगे अधीन है पाँयन सीस नवायो; केती करी बिनती 'मतिराम' पै मैं न कियो हठ तें मन भायो। १ बिगारी, २ सहेली, ३ आजु तो, ४ राधिके, पाँय को। छं०नं० १३४ ढिठाई बगारी=ढिठाई की। मनुहारि करी कर जोरि हहारी हाथ जोड़कर बहुत तरह से खुशामद की। छं० २० १३६ गुमान मैं ऐसी भई अलबेली=अभिमान में ऐसे विचित्र रूप से मग्न