पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/२८३

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Here रसराज २७९ ऐसे सयान सुभायन हीं सौं मिली मनभावन सौं मन भोरै'; मान गौ जानि सुजान तबै अँगिया की तनी न छटी जब छोरै। १२७॥ आदर करि पिय सौं मिली तिय हिय राखि सयान । दृढ़ कसि बाँधी कंचुकी समुझायो मन-मान ॥१२८॥ परकीया-खंडिता-उदाहरण । रावरे नेह को लाज तजी अरु गेह के काज सबै बिसराए; डारि दिए गुरु लोगनि को डर गाम चवाई मैं नाम धराए। हेत कियो हम जो तो कहा तुम तो 'मतिराम' सबै बिसराए; कोऊ कितेक उपाय करौ कहुँ होत हैं आपने पीउ पराए । १२९॥ हमसौं तुमसौं लाल इत नैनन ही सौं नेह । उत प्यारी के दगन के सलिल सींचियत देह ॥१३०।। गणिका-खंडिता-उदाहरण ह्याँ हमसों मिलिबो ठहराय के सैन कहूँ अनते ही करीजै; भोरहिं आय बनाय के बातनि चातुर कै बिनती बहु कीजै । ऐसीहि रीति सदा 'मतिराम' सु कैसे पियारे जु प्रेम पतीजै; सौंहैं न खाइए जाइए ह्याँ ते न मानहु जो धन लाखन दीजै। १३१॥ कंत कहा सौंहन करो जानि परयो अब नेह । देन कह्यो सो बिन दिएँ जान न पैहो गेह ॥१३२।। १ मोरै, २ दै, ३ किंकिनी, ४ नाउँ, ५ हिय सों, ६ न जी ठहराए, ७ कितेकौ, ८ सो, ९ प्रीति, १० न मानिहौं तौहूँ जो लाखन दीजै । छं० नं० १२७ सयान सुभायन=ऐसे सयानेपन के साथ । सुजान= नायक । तनी= कंचुकी के बंद । छं० नं० १३० दगन के सलिल सींचियत=आँसुओं से भिगोते हैं। छं० नं० १३१ अनते ही=अन्यत्र ही। पतीज=विश्वास करे । सौंहैं =क़समें ।