२७६ मतिराम-ग्रंथावली open MARAT livisio SALARAKonkan AMERA mainedomesaninine i ahartaramaianim n guNAGAR mirmimmatwmommarate I NTane लाजनि ते कळू न जनावै' काहू सखी हूँ सौं', . उर को उदार अनुराग उमँगतु है; कहा करों? मेरी बीर! उठी है। अधिक पीर, सरभी-समीर सीरो तीर-सो लगत है ॥११४॥ बहू दुबरी होत क्यों, यौं जब बूझ्यो सास । ऊतर कढ़यो न बाल-मुख, ऊँचे लेत उसास ॥११५॥ प्रौढ़ा-प्रोषितपतिका-उदाहरण बिरह तिहारे लाल ! बिकल भई है बाल, . नींद, भूख, प्यास, सिगरी, बिसारियत है; चोरी कैसी बात चंद्रमा ह ते चरायत, बसननि तानि के बयारि बारियत है। कहै 'मतिराम' कलाधर कैसी कला छीन, जीवन-बिहीन मीन-सी निहारियतु है; बार-बार सुकुमार फूलन की मारे' ऐसी, ___मार के मरोरनि मरोरि मारियतु है ॥११६।। चंद्र-किरन लगि बाल-तन उठति आँच" यौं जागि। दुपहर-दिनकर-कर परसि ज्यौं दरपन मैं आगि ॥११७॥ परकीया-प्रोषितपतिका-उदाहरण हाँ मिलि मोहन सौं 'मतिराम'सुकेलि करी अति आनँदवारी; तेई लता-द्रुम देखत दु:ख चले अँसुआ अँखियान ते भारी। १ जनय, २ सखिन सों, लोगनि सों, ३ कहौं, ४ उठहि, ५ कत, ६ ऊँचो लयो, ७ ब्याकुल, ८ छिपाइयतु, ९ माल, १० मसूसनि, मरूरनि, ११ आगि । छं० नं० ११६ चंद्रमा हू ते चुराइयत=महावरा है, अभिप्राय यह है कि अत्यंत गुप्त रखने की चेष्टा करती है। जीवन-बिहीन मीन जल अथवा प्राण-रहित मत्स्य । मार के मरोरनि मरोरि मारि- यतु है कामदेव तोड़-मरोड़कर जान ले लेता है। छं० नं० ११७ दिनकर-कर सूर्य की किरण । दरपन =दर्पण, शीशा।
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