पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/२८

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मतिराम-ग्रंथावली

मतिराम-ग्रंथावली emainstreebandiceae शम स्थायी से 'शांत-रस' माना गया है। तेंतीस व्यभिचारी भाव निम्नलिखित हैं-- निर्वेद, ग्लानि, शंका, श्रम, धृति, जड़ता, हर्ष, दैन्य, उग्रता,चिता, त्रास, ईर्ष्या, अमर्ष, गर्व, स्मृति, मरण, मद, सुप्त, निद्रा, विबोध, बीड़ा, अपस्मार, मोह, सुमति, अलसता, आवेग, तर्क, अवहित्थ, व्याधि, उन्माद, विषाद, उत्सुकता और चपलता। सांसारिक आनंदों से उदासीनता निद है । प्रबल विरोध अमर्ष है । ज्ञान-शक्तियों की जागति विबोध है। मानसिक विकार के छिपाने की चेष्टा अवहित्थ है। करुण-रस में-निर्वेद, मोह, अपस्मार, व्याधि, ग्लानि, स्मृति, श्रम, विषाद, जड़ता, उन्माद और चिंता, ये ११ संचारी भाव पाए जाते हैं। रौद्र-रस में-उग्रता, आवेग, रोमांच, स्वेद, वेपथु, मद, मोह और अमर्ष-नामक ८ व्यभिचारी पाए जाते हैं। वीर-रस में-धृति, सुमति, गर्व, स्मृति, तर्क और रोमांच व्यभि- चारी हैं। ___भयानक-रस में-जुगुप्सा, आवेग, मोह, त्रास, ग्लानि, दैन्य, शंका, अपस्मार, उन्माद और मरण-नामक १० व्यभिचारी होते हैं। बीभत्स-रस में-मोह, अपस्मार, आवेग, व्याधि और मरण-नामक व्यभिचारी होते हैं। अद्भुत-रस में-तर्क, आवेग, उन्माद, हर्ष व्यभिचारी हैं। हास्य-रस में-निद्रा, आलस्य और अवहित्थ, ये तीन व्यभिचारी भाव माने गए हैं। शृंगार-रस में-उग्रता, मरण, आलस्य और जुगुप्सा-नामक चार व्यभिचारी भावों को छोड़कर शेष २९ पाए जाते हैं । जो आचार्य शांत-रस को मानते हैं, वे उसमें निर्वेद, हर्ष, स्मरण और मति को संचारी समझते हैं।