पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/२७८

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HARIm prada MINS २७४ मतिराम-ग्रंथावली जागि परी ‘मतिराम' सरूप गुमान जनावत भौंह के भंगनि; लाल सों बोलति नाहिंन बाल सु पोंछति आँखि अंगोछति अंगनि। १०५॥ कैसे आऊँ हूँ वहाँ हैं जित नंदकिसोर । दिन हूँ में मुखचंद को लखि ललचात चकोर ।।१०६॥ मानवती-लक्षण करै ईरषा सों जु तिय मनभावन सों मान । मानवती तासों कहत कबि 'मतिराम' सुजान' ॥१०७॥ उदाहरण सो मनमोहन होत लटू मुख जाके भटू ! बिधु की छबि छाजै; खोल के नैनन देखें जो नेक तो स्याम सरोज-पराजय साजै । जो बिहँसै मुख संदर तो 'मतिराम' बिहान को बारिज लाजै; बोले अली मृदु मंजुल बोल तो कोकिल-बोलनि को मद भाजै ।। १०८॥ सुन चित' दै मनमानिनी ! बिन अपराध रिसानि । नेह-जरावन को महा दीपि जोति जिय जानि ॥१०९।। दश नायिका प्रोषितपतिका, खंडिता, कलहंतरिता जान । बिप्रलब्ध, उतकंठिता, बासकसज्जा मान ।। स्वाधिनपतिका, कहत कबि, अभिसारिका सुनाम । कही प्रबच्छतिप्रेयसी', आगतपतिका बाम ।। दसों अवस्था-भेद सौं दसों नायका जानि । तिनके लच्छन-लच्छ अब, आछे कहीं बखानि ॥११०॥ १ कबिजन परम सुजान, २ सुनु इत,सुनियत, ३ उत्का बहुरि, ४ स्वाधीन प्रियतम कहै, ५ प्रवत्स्यत्प्रेयसी, ६ नीके। छं० नं० १०८ लटू=लटू, लोट-पोट । स्याम सरोज=नीलो- त्पल । बिधु-चंद्रमा । बिहान =प्रातःकाल । छं० नं० ११० आछे अच्छी तरह से।