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मतिराम-ग्रंथावली


आनन कौं इंदु जान, आँखें अरविंद मानि, इंदिरा रजनि-दिन रहति सिहाइ' कै; नायक नवल क्यों न देय धन-मन ऐसे ? . सुतनु कौं सुतनु अतुन-धन पाइ कै ॥९॥ लसत गूजरी ऊजरी बिलसत लाल इजार । हियै हजारनि के हरै बैठी बाल बजार ॥९६॥ अन्य-संभोगदुःखितादि-भेद अनसौं रति हय दुःखिता, प्रेमगरबिता जान । रूपगरबिता और पुनि मानवती उर आन ॥९७॥ अन्य-संभोगदुःखिता-लक्षण निज पति के रति-चिह्न जो लखे और तिय-देह । अन्य सुरतिदुखिता कहौ, करै पेच-रिस-तेह ॥९८॥ उदाहरण याही कौं पठाई भलो काम करि आई बड़ी, तेरी ये बड़ाई लखे लोचन लजीले सौं; साँची क्यों न कहे कछु मोकौं किधौं आपहिं कौं, पाइ बकसीस लाई बसन छबीले सौं। 'मतिराम' सुकबि सँदेसो अनुमानियत', तेरे नखसिख अंग हरष कटीले सौं; तू तो है रसीली रस-बातन बनाय जानें, मेरे जान आई रस राखि के रसीले सौं ॥१९॥ कहत तिहारो रूप यह, सखी पैड़ को खेद । ऊँची लेत उसास है कलित सकल तन-स्वेद ॥१०॥ १ सहाय, २ बिचार ३ कबि मतिराम मोसो कहत सदसोऊ न, ४ भरे । ___ छं० नं० ९५ सुतनु दो बार आया है। एक बार वह नायक का विशेषण है और दूसरी बार अतनु का । अतनु कामदेव । छ० नं० ९६ इजार-पायजामा । छं० नं० ९९ रसीले=रसिक नायक । छं० नं० १०० पैड़=रास्ता ।