चित्र' मैं बिलोकत ही लाल को बदन बाल,
____ जीते जिहि कोटि चंद सरद-पुनीन के ;
मुसकानि अमल कपोलन मैं रुचि बुद,
चमकै तरयौननि की रुचिर चुनीनरे के।
प्रीतम निहारयो बाँह गहत अचानक ही, .
____ जामैं ‘मतिराम' मन सकल मुनीन के ;
गाढ़े गही लाज-मैन, कंठ कै फिरत बैन,
___ मूल छवै फिरत नैन-बारि बरुनीन के ॥ ३१॥
केलि-भवन की देहरी खरी बाल छबि नौल।
काम कलित हिय को लहै लाज कलित दृग-कौल ॥ ३२ ॥
प्रौढ़ा-लक्षण
निज पति सौं रति-केलि की सकल कलानि प्रबीन ।
तासों प्रौढ़ा कहत हैं, जे कबिता -रस-लीन ॥ ३३ ॥
उदाहरण
प्रान-पिया मनभावन संग, अनंग-तरंगनि रंग पसारे ;
सारी निसा 'मतिराम' मनोहर, केलि के पुंज हजार उघारे ।
होत प्रभात चल्यौ चहै प्रीतम, सुंदरि के हिय मैं दुख भारै ;
चंद-सौ आनन, दीप-सी दीपति, स्याम सरोज-से नैन निहारे ॥
३४॥
१ चित, २ गुनीन, ३ भौन, ४ कौन, ५ कबित्त, ६ अनेक ।
छं० नं० ३१ सरद-पुनीन=शरद् पूर्णिमाओं के । मैन=काम ।
बरुनी पलकै । छं० नं० ३२ नौल-नवल=सुंदर । कलित=शोभित ।
कौल=कमल । छं० नं० ३४ पसारे=फैलाए । उघारे=खोले । अनंग-
तरंगनि रंग पसारे=अनंग लहरियों के रंग विस्तृत किए । केलि के
पुंज हजार उघारे नाना प्रकार की काम-क्रीड़ा की । स्याम सरोज=
नीलोत्पल, नीला कमल । नील कमल के संबंध में यह कवि-संप्रदाय है
कि वह दिन में न फूलकर रात में फूलता है।
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रसराज