nadiaom २४६ मतिराम-ग्रंथावली anderienloadurinepapradeshwinimumdRLMCate Boaaiiindian iniessentingsekes ना csmalani a D - | maARAN संदर, स्पष्ट तथा पक्की काली रोशनाई की है। बीच-बीच में लाल रोशनाई का भी प्रयोग हुआ है, और पुस्तक हरताल लगाकर शुद्ध भी की गई। 'फतू' नाम के किसी लेखक ने इसे लिखा है । पुस्तक लिखे जाने का संवत् भी दिया है। संवत् के आदि का १७ तथा अंत का ४ तो बिलकुल स्पष्ट है, पर बीच का अंक कुछ खुरच गया है, जिससे उसके पढ़ने में भ्रम होता है। जो हो, उपलब्ध प्रति सं० १७९४ के बाद की लिखी तो किसी भी प्रकार से नहीं है। आजकल की देवनागरी-लिपि से उक्त लिपि में व्यवहृत कुछ अक्षरों में भेद पड़ता है। उदाहरण के लिये उक्त प्रति में व्यवहृत 'भ' का रूप आजकल के 'ल' से मिल जाता है। अंतिम दोहे का नं० ७०४ है । खोज की रिपोर्ट में मतिराम-सतसई के जो दो अंतिम दोहे उद्धत हैं, वे वही हैं, जो इस प्रति में हैं। भेद इतना ही पड़ता है कि रिपोर्ट- वाले अंतिम दोहे का नं० ७०५ है, और इस प्रति के दोहे का ७०४। वे दोनो दोहे ये हैं- तिरछी चितवनि स्याम को लसति राधिका-ओर; भोगनाथ को दीजिए वह मन-सुख बरजोर ॥१॥ मेरी मति में राम है, कबि मेरे मतिराम; चित मेरो आराम में, चित मेरे आराम ॥२॥ रिपोर्ट में 'भोगनाथ' के स्थान पर 'लोगनाथ' छपा है। यह भ्रम कदाचित् 'भ' और 'ल' के रूप में समता होने के कारण हुआ है। रिपोर्ट में जिस सतसई का उल्लेख है, उसमें ५० पृष्ठ हैं। प्रति पृष्ठ की लंबाई ९ इंच तथा चौड़ाई साढे पाँच इंच है। प्रति पृष्ठ में १८ पंक्तियाँ तथा पूरी प्रति में ८४० दोहे हैं। खोज की रिपोर्ट में मतिराम-सतसई के आदि और मध्य के जो ६ दोहे और दिए हुए हैं, तथा जो हमें मिलनेवाली खंडित प्रति में नहीं हैं, उन्हें भी हम दिए देते हैं-
पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/२५०
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