समीक्षा २४३ का स्पष्ट उल्लेख किया है। इस संबंध में उनका जो छंद है, वह ऊपर दिया ही जा चुका है। 'ललितललाम' के अंत में कवि ने राव भावसिंहजी को एक छप्पय द्वारा आशीर्वाद दिया है। उसका कुछ अंश इस प्रकार है- "नृप सत्रुसाल-नंदन नवल भावसिंह भूपाल-मनि; जग चिरंजीव तब लगि सुखद कहत सकल संसार धनि ।" उक्त पद्यांश में 'नवल'-शब्द पर हम पाठकों का ध्यान विशेष रीति से आकर्षित करते हैं। हमारा विचार है, यह छप्पय उस समय बना है, जब भावसिंह को सिंहासनासीन हुए बहुत समय नहीं बीता था। सब बातों पर ध्यान देने के पश्चात् हमारी राय है कि 'ललित- ललाम' १७१९ में बना। बंदो-दरबार में मतिराम की पूर्ण प्रतिष्ठा थी। भावसिंहजी के लिये इन्होंने 'ललितललाम' ग्रंथ बनाया था । बूंदी-नरेश को यह ग्रंथ इतना पसंद पड़ा कि उन्होंने कविवर को इस उपलक्ष्य में समस्त वस्त्र, आभूषण, चार हजार रुपए, ३२ हाथी और पाटन-परगने के रिड़ी और चिड़ी दो गाँव दिए (देखो पराक्रमी हाड़ाराव, पृष्ठ २६२)। यह विवरण राव सूर्यमल्ल कवि के वंश-भास्कर में भी दिया हुआ है । वंश-भास्कर की रचना संवत् १८९७ में हुई थी। इसमें बूंदी-राज्य का इतिहास विस्तार के साथ है। मुंशी देवीप्रसाद का राय में इसमें इतिहास है; मगर कविता में छिपा हुआ। इस पुस्तक में मतिराम के संबंध में जो कुछ लिखा है, वह अविकल उद्धृत किया जाता है- "भाऊ को प्रभाव अलंकारन - विषय आनि, नूतन बनाय ग्रंथ 'ललितललाम' नाम; संसद को पाय सो नरेसन सुनाय रुचि, रीझ पै बढ़ाय कह्यो आगम जितेक काम ।
पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/२४७
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समीक्षा