। marate २४२ मतिराम-ग्रंथावली पति पातसाह की, इजति उमरावन की राखी रैया राव भावसिंह की रहति है।" (मतिराम) "सासताखाँ दुरयोधन-सो औ' दुसासन-सो जसवंत निहारयो; द्रोन-सो भाऊ, करन्न करन्न-सो और सबै दल सो दल भारयो। ताहि बियोग सिवा सरजा, भनि 'भूषन', औनि छता यों पछारयो; पारथ के पुरुषारथ भारथ जैसे गजाय जयद्रथ मारयो ॥" (भूषण) यह घटना संभवतः सं० १७१८ के लगभग की समझ पड़ती है। मतिरामजी के 'ललितललाम' ग्रंथ में भावसिंह द्वारा दिल्ली-नरेश की इसी सहायता का उल्लेख है। राव भावसिंह सं० १७२० के पश्चात् फिर दिल्ली गए थे । औरंगजेब ने इनको मनसब दिया था। दिल्ली में इनका रहना प्रायः दो वर्ष हुआ था। भगवान् के विमानों के निकालने में इन्होंने बड़ी दृढ़ता दिखलाई थी। कहते हैं, औरंगजेब ने हिंदू-नरेशों से बादशाह के साथ भोजन करने का प्रस्ताव किया था, जिसका अकेले इन्होंने ही विरोध किया था। केशवराय के मंदिर की रक्षा में भी इनका हाथ था। अंतिम समय में इनकी इज़्ज़त देवतों के समान हो गई थी। राव भावसिंहजी के जीवन-काल की उपर्युक्त सभी घटनाएं ऐसी हैं, जिनका उल्लेख उन्हींका आश्रित कवि उनके आदेश से बनाए ग्रंथ में अवश्य करता; परंतु 'ललित- ललाम' में इन घटनाओं से संबंध रखनेवाले वर्णनों का स्पष्ट उल्लेख कहीं भी नहीं मिलता। यदि ये घटनाएं घट चुकी होतीं, तो मतिरामजी इनका उल्लेख कैसे न करते ? सो यह मानने में कोई प्रबल आपत्ति नहीं कि 'ललितललाम' की रचना इन घटनाओं के पूर्व की है। औरंगज़ेब और शिवाजी की प्रारंभिक छेड़छाड़ का आरंभ सं० १७१८ के लगभग हुआ था। मतिरामजी ने इस घटना
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मतिराम-ग्रंथावली