पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/२४४

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मतिराम-ग्रंथावली

womences Clasidarbassainamainanimes SEE । २४० मतिराम-ग्रंथावली का मंगलाचरण न करने का भी यही कारण बतलाते हैं, क्योंकि उक्त सम्राट् वैदिक मत का बड़ा द्वेषी था। इसके साथ ही यह संदेह डालनेवाली बात भी है कि इस ग्रंथ में बादशाह की प्रशंसा कहीं भी नहीं लिखी है कि जिसकी बड़ी भारी चाल आज तक चली आती है।" इत्यादि। उक्त प्रेस से प्रकाशित रसराज का प्रारंभ "होत नायका नय- कहि आलंबित शृंगार" इत्यादि दोहे से हुआ है। परंतु अन्य यंत्रा- लयों से प्रकाशित होनेवाली प्रतियों में इस दोहे के पूर्व ४ छंद और हैं । मंगलाचरण-रूप प्रथम सवैया में देव-वंदना है। दूसरे दोहे में श्रीगुरुचरण और गणपति का ध्यान किया गया है, तथा तीसरे दोहे में कवि ने सुकवियों से क्षमा-प्रार्थना की है। रसराज की मुद्रित प्रतियों में सबसे पुरानी सं० १९२५ में बनारस के लाइट-छापेखाने में छपी है। इस प्रति में देवता और गुरु-विषयक छंद मौजूद हैं। वेंकटेश्वर-प्रेस और नवलकिशोर-प्रेसवाली प्रतियों में भी ये छंद हैं । इस कारण इष्टदेव का मंगलाचरण न होने से पुस्तक औरंगजेब के लिये बनाई गई, यह निष्कर्ष निकालना भ्रम-मात्र समझ पड़ता है। ऐसा जान पड़ता है कि रसराज की रचना उस समय हुई, जब मतिरामजी पूर्ण युवा थे। यह समय सं० १६९० और १७०० के बीच में होगा। मतिरामजी का कविता-काल कविवर बिहारीलाल के कविता-काल से बहुत पहले आरंभ होता है, यद्यपि दोनो कवि कुछ समय के लिये समसामयिक भी थे। जैसा कि हम ऊपर लिख आए हैं, मतिराम ने किसी नरेश के आश्रय में न बनाकर अपनी काव्य-प्रतिभा के प्रताप से सुकवियों का सुखदायक रसराज रसिकों के मनोरंजन के लिये बनाया था; परंतु इस ग्रंथ की ख्याति इतनी हुई कि इसी की बदौलत मतिराम का बड़े-बड़े रजवाड़ों में आदर होने लगा । ललित ललाम बूंदी के राव भावसिंह के लिये बना था। BlastNSF