। T Timetaman a s incomindinangimentaries manacadiatimammichitamanna i megeme मतिराम-ग्रंथावली ___ ललित ललाम में उपर्युक्त छंद तृतीय आक्षेप और रसराज में मुग्धा प्रवत्स्यत्प्रेयसी के उदाहरण में दिया हुआ है। कहना नहीं होगा कि नायिका और अलंकार, दोनो का निर्वाह छंद में समान चमत्कार के साथ हो जाता है; परंतु तृतीय आक्षेप का काम अंतिम पंक्ति से भी चल सकता था, पर प्रवत्स्यत्प्रेयसी के लिये सभी पद समान रूप से उपकारी हैं। छंद को पढ़ना आरंभ करते ही हठात् यही विचार उठता है कि मतिरामजी प्रवत्स्यत्प्रेयसी का उदाहरण दे रहे हैं । अंतिम पंक्ति मुग्धात्व और आक्षेप, दोनो के लिये समान उपयोगिनी है; पर संपूर्ण छंद मुग्धा प्रवत्स्यत्प्रेयसी का फोटो है- उसी के उदाहरण में चस्पाँ है। ___पाठकों से हमारी प्रार्थना है कि वे इसी प्रकार प्रौढ़ा आगत- पतिका और स्मृति-संबंधी रसराज के वर्णन ललित ललाम के उपमा के उदाहरणों से मिलाएँ एवं परिहास और भ्रम, मध्या स्वाधीन- पतिका और वस्तूत्प्रेक्षा, मध्यम दूती, संबंधातिशयोक्ति, मुग्धा, तुल्य- योगिता, मंडन, आक्षेप और मध्या सम आदि अनेक उदाहरणों पर विचार करें। हमने प्रायः इन सभी पर विचार करके यह निष्कर्ष निकाला है कि उपर्युक्त सभी उदाहरण रसराज में विशेष फबते हैं । यदि ललित ललाम से छंद लिए गए होते और रसराज के बनते समय उक्त ग्रंथ प्रस्तुत होता, तो यह संभव नहीं जान पड़ता कि 'ललित ललाम' के कई एक शृंगार-रस के अत्युत्कृष्ट छंद रसराज में स्थान न पाते । उदाहरण के लिये- "हक डहडहे दिन, समता के पाए बिन, साँझ सरसिजन सरभि सिर नायो है; निसा-भरि निसापति करिक उपाय बिन . पाए रूप, बासर बिरूप ह लखायो है । कहै 'मतिराम', तेरे, बदन बराबरि को आदरस बिमल विरंचि न बनायो है। ommittuRAINMomMummaansonpiradAHAR Heased ।
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