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मतिराम-ग्रंथावली


किसी कविराज की उद्दंडता से दरबार के सभी कवियों से रुष्ट हो गए थे। सभी का अनादर करने लगे थे। उस अवसर पर मतिरामजी ने कैसी मधुर चेतावनी दी थी।


करन के, बिक्रम के, भोज के प्रबंध सुनो,
कैसी भाँँति कबिन को आगे लीजियतु है;
‘कबि मतिराम’ राजसभा के सिंगार हम,
जाके बैन सुनत पियूष पीजियतु है।
एक के गुनाह नरनाह श्रीउदोतचंद,
कबिन पै एतो कहा रोष कीजियतु है?
काहू मतवारे एक अंकुस न मान्यो, तो
दुरद दरबारन ते दूरि कीजियतु है।

कुमायूँँ-नरेश की प्रशंसा भूषणजी ने भी की है।

वृत्त-कौमुदी

प्रायः दो वर्ष हुए, जब पं० भागीरथप्रसादजी दीक्षित ने इस पुस्तक को असानी में ढूँँढ़ निकाला। इसके रचयिता का नाम भी मतिराम है, और इसका निर्माण-काल संवत् १७५८ है। इसमें कवि का वंश-परिचय भी दिया हुआ है। इसमें वृत्त-कौमुदी के रचयिता वत्सगोत्री त्रिपाठी प्रमाणित होते हैं। इनका निवास स्थान वनपुर में था, और इनके पिता का नाम विश्वनाथ था। दीक्षितजी रसराज और वृत्त-कौमुदी के रचयिता को एक ही व्यक्ति मानते हैं, और उनका कहना है कि रसराज के रचयिता का जो ‘छंद-सार-पिंगल’ प्रसिद्ध है, वही यह 'वृत्त-कौमुदी' ग्रंथ है, क्योंकि इसके अंत में भी ‘छंद-सार-संग्रह’ दिया हुआ है। दीक्षितजी का यह भी कहना है कि ‘शिवसिंहसरोज’ में ‘छंद-सार-पिंगल’ के जो दो छंद उदाहरण-रूप दिए गए हैं, उनमें से एक (दाता भयो जैसो इत्यादि) ‘वृत्त-कौमुदी’