(६) साहित्य-सार
यह १० पृष्ठ का एक छोटा-सा ग्रंथ है। इसमें नायिका भेद का वर्णन है। इसकी हस्त-लिखित प्रति दतिया-राज के पुस्तकालय में मौजूद है। यह प्रति सं॰ १८३७ की लिखी हुई है। ग्रंथ संभवतः १७४० में बना होगा।
(७) लक्षणश्रृंगार
यह १४ पृष्ठ का छोटा-सा ग्रंथ है। इसमें भावों और विभावों का वर्णन है। हस्त-लिखित प्रति संवत् १८२२ की लिखी हुई है, और विजावर-राज्य के पुस्तकालय में मौजूद है। इसकी रचना भी संभवत: १७४५ के लगभग हुई होगी।
(८) अलंकार-पंचाशिका
यह ग्रंथ संवत् १७४७ में कुमायूं के राजा उदोतचंद के पुत्र ज्ञानचंद के लिये मतिरामजी ने बनाया। इसके कुछ उदाहरण दिए जाते हैं—
"गजपुर गिरिजा गिरिस रबि हरि पूँजौं हर बार;
मन-बच राजकुमार कौं कीजो कृपा अपार।
महाराज उद्योतचॅंद भयो धरम को धाम;
तपन धरनि पर एक सम चहूँ चक्र पर नाम।
देस दाबि दिल्लीस को गए सुरसरी न्हान।
लए बिकट गढ़ जीतिकैं दए षोड़सौ दान।
तिनके राजकुमार घर ग्यानचंद कुलचंद;
कुबलय कोबिद कबिन कौं बरसै सुधा अमंद।
यों कुमारता ही भयो जहाँ-तहाँ परगास;
अरुन उदै ही होत ज्यों अंधकार कौ नास।