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मतिराम-ग्रंथावली

उत्कृष्टता का अंदाजा इसी बात से हो सकता है कि इस पर कई उत्कृष्ट कवियों ने टीकाएँ लिखी हैं। संवत् १८१२ के लगभग चरखारी के राजा रतनसिंह के आश्रित बखतेश कवि ने रसराज पर एक अत्युत्कृष्ट टीका बनाई। संवत् १८९६ में सुप्रसिद्ध प्रतापसाहि कवि ने भी इस ग्रंथ पर एक अनुपम तिलक लिखा। अभी संवत् १९५० में कवि हरिदानजी सिंडायच ने भी 'मनोहरप्रकाश' नाम से एक टीका बनाई है। यह पुस्तक छप भी गई है।

(३) छंद-सार-पिंगल

कहा जाता है, श्रीनगर के फ़तेहसाहि बुंदेला के लिये इस ग्रंथ की रचना हुई थी। इसका निर्माण-काल अनिश्चित है, पर अनुमान किया जाता है कि वह संभवतः सं॰ १७०० और १७१० के बीच में बना होगा।

(४) ललित ललाम

यह अलंकार-शास्त्र-संबंधी ग्रंथ है। बूंदी के महाराज भावसिंहजी के लिये इस ग्रंथ की रचना हुई है । हमारा विचार है कि यह पुस्तक संवत् १७१८ और १७१९ के बीच में बनी थी। इस पर गुलाब कविराज ने, संवत् १९४१ में, 'ललित कौमुदी' नाम से एक टीका भी की है। सटीक 'ललितललाम' भारत-जीवन-प्रेस, काशी में मुद्रित भी हो गया है। इसके और रसराज के समय पर हमने आगे विशेष विचार किया है।

(५) मतिराम-सतसई

यह पुस्तक किन्हीं भोगराज नाम के गुणी राजा के लिये मतिरामजी ने बनाई हैं। इस ग्रंथ का भी समय अनिश्चित है। हमारे खयाल से इसकी रचना 'रसराज' और 'ललितललाम' के बाद की है। संभवतः यह ग्रंथ संवत् १७२५ और १७३५ के बीच में बना है। इस ग्रंथ पर आगे हमने विस्तार के साथ विचार किया है।