सवार का कर दिया। XXX बुधवार को बादशाह बेगमों-सहित नाव पर बैठकर 'नूरअफ़शाँ बाग़' में गया। यह बाग़ नूरजहाँ की सरकार में था। इसलिये उसने दूसरे दिन गुरुवार के उत्सव की बड़ी भारी मजलिस करके एक शानदार भेंट पेश की। बादशाह ने एक लाख रुपए के जवाहिर, जड़ाऊ पदार्थ और दिव्य वस्त्र उनमें से चुनकर ले लिए।"
हो सकता है, 'फूल-मंजरी' की रचना इसी समय हुई हो, और उसमें जिन फूलों का वर्णन पाया जाता है, वे 'नूरअफ़शाँ बाग़' के ही मनोमोहक पुष्प हों। पर यह हमारा अनुमान-ही-अनुमान है। निश्चय-पूर्वक कोई भी बात नहीं कही जा सकती। जो हो, हम 'फूल-मंजरी' का रचना-काल संवत् १६७८ मानते हैं। इस समय मतिराम की अवस्था १८ वर्ष के लगभग थी। सो उनका जन्मकाल संवत् १६६० के आस-पास पड़ता है। 'फूल-मंजरी' हमें श्रीयुत भवानीशंकरजी याज्ञिक की कृपा से प्राप्त हुई है। उसके दो और दोहे यहाँ उदाहरण-स्वरूप दिए जाते हैं—
"कमल-नैन लीनें कमल कमल-मुखी के ठाउँ;
तन न्योछावरि राज की, यहि आवनि बलि जाउँ।
निस कारी भारी हुती, तरसत मेरो जीव;
फूल निवारी को सरस वारी तुम पर पीव।"
(२) रसराज
इस ग्रंथ में शृंगार-रसांतर्गत नायिका-भेद का वर्णन है। यह किसी राजा के आश्रय में नहीं बनाया गया है। मतिराम का सर्वोत्कृष्ट ग्रंथ यही है। कवि की अवस्था जिस समय ३० या ३५ वर्ष की होगी, उस समय यह ग्रंथ बना होगा। अनुमान से इसका रचना-काल हम सं॰ १६९० और १७०० के बीच में मानते हैं। इस ग्रंथ की