पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/२२१

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समीक्षा

शब्द-समूह का न्यास भी यदि एक ही प्रकार का हो, तो क्या इससे यह निष्कर्ष निकालना अनुचित होगा कि दोनो कवि एक दूसरे से परिचित थे, और उनका संबंध ऐसा था कि एक दूसरे का अनुकरण करने में वे हानि न समझते थे। पाठकगण काशी-नागरी-प्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित शिवराजभूषण और भारत-जीवन प्रेस, काशी के छपे ललितललाम' को सामने रख लें, और निम्न-लिखित लक्षणों का मिलान करें—

मालोपमा

"जहाँ एक उपमेय को होत बहुत उपमान;

तहाँ कहत मालोपमा कबि 'मतिराम' सुजान।"

(ललितललाम, पृष्ठ ३२)


"जहाँ एक उपमेय के होत बहुत उपमान;

ताहि कहत मालोपमा, 'भूषन' सुकबि सुजान।"

(शिवराजभूषण, पृष्ठ १८)

उल्लेख

"कै बहुतै, कै एक जॅंह, एकहि को उल्लेख;

बहुत करत उल्लेख तँह, कहत सुकबि सबिसेष।"

(ललितललाम, पृष्ठ ४७)


"के बहुतै, कै एक जॅंह, एक बस्तु को देखि,

बहु बिधि करि उल्लेख हैं, सो उल्लेख उलेखि।"

(शिवराजभूषण)

छेकापह्नुति

"जहाँ और को संक ते साँच छपावत बात;

छेकापह्नुति कहत हैं तहाँ बुद्धि अवदात।"

(ललितललाम)