पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/२१९

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समीक्षा

नहीं किया। जो हो, इस वर्णन से इतना पता अवश्य चलता है कि मतिराम, भूषण और चिंतामणि एक ही जगह—टिकमापुर में—रहते थे। उपर्युक्त उद्धरण हमें सं० १९७९ के 'कवि'-नामक मासिक पत्र के तृतीय वर्ष की ज्येष्ठवाली तृतीय संख्या में मिला है।

अच्छा, तो ऊपर जो कुछ लिखा गया है, उससे जान पड़ता है, भूषण कश्यप-गोत्री त्रिपाठी और टिकमापुर के रहने वाले थे, तथा मतिराम भी कश्यप-गोत्री त्रिपाठी और टिकमापुर के रहनेवाले थे, एवं चिंतामणि भी टिकमापुर के रहनेवाले थे; पर क्या वे कश्यप- गोत्री त्रिपाठी भी थे? पं० मयाशंकरजी याज्ञिक को चिंतामणि-कृत रामाश्वमेध के आदि के कुछ पृष्ठ मिले हैं, उनमें कवि-वंश का भी कुछ अंश है, पर पूरा नहीं। यदि आगे के पृष्ठ मिल जायें, तो सब बातें ठीक-ठीक मालूम हो जायें। फिर भी अब तक जितना अंश मिला है, उससे यह स्पष्ट है कि चिंतामणि कान्यकुब्ज कश्यप-गोत्री मनोह के तिवारी थे। सो चिंतामणि को भी कश्यप-गोत्री त्रिपाठी और टिकमापुर का रहनेवाला मानने में कोई आपत्ति नहीं रह जाती।

जिला हरदोई में क़स्बा बिलग्राम चिरकाल से प्रसिद्ध है। इसमें प्राचीन काल से बड़े-बड़े गुणी उत्पन्न होते आए हैं। यहीं के विद्वान्गु लामअली नाम के एक सज्जन ने संवत् १८१० में 'तजकिरा सर्व आज़ाद हिंद'-नामक एक फ़ारसी-ग्रंथ की रचना की। यह ग्रंथ 'कुतुब-खाना आसफ़िया हैदराबाद दक्खिन' की ओर से प्रकाशित भी हो गया है। मीर जलील नाम के एक और मुसलमान सज्जन बिलग्राम में हो गए हैं। यह हिंदी के कवि थे। गुलामअली इन्हीं मीर जलील के भांजे थे। बिलग्राम के ही रहनेवाले सैयद रहमतुल्ला साहब मुग़ल सरकार की ओर से जाजमऊ और बैसवाड़े के दीवान थे। रहमतुल्ला साहब हिंदी-काव्य के ज्ञाता थे, और चिंतामणि को उन्होंने पुरस्कृत किया था। मीर जलील रहमतुल्ला के मित्र और प्रशंसक थे। ये सब