पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/२१७

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२१३
समीक्षा

  मतिराम

जटाशंकर

उपर्युक्त सम्मतियों के अनुसार केवल दो बातों में मतभेद है— एक तो नं० १, २ और ३ के मतानुसार जटाशंकर का नाम नहीं लिया गया है। केवल भूषण, मतिराम और चिंतामणि भाई माने गए हैं। दूसरे, अंतिम तीन सम्मतियों के अनुसार चिंतामणि सबसे बड़े थे; पर पहली तीन सम्मतियों के अनुसार चिंतामणि सबसे छोटे और भूषण सबसे बड़े माने गए हैं। पर इन सब सम्मतियों में इस बात का ऐकमत्य है कि भूषण, मतिराम तथा चिंतामणि सगे भाई थे। यह स्मरण रहे कि इन सम्मतियों का एकमात्र आधार किंवदंती है। स्वयं भूषणजी इस भ्रातृसंबंध के विषय में कुछ नहीं कहते।

मतिरामजी के वंश में बिहारीलाल नाम के एक परम प्रसिद्ध कवि हो गए हैं। शिवसिंहसरोज के पृष्ठ ४४४ पर इनके विषय में लिखा है—"३ लाल कवि ३ बिहारीलाल त्रिपाठी टिकमापुरवाले सं॰ १८८५ में। ये कवि मतिराम-वंशी कवि बड़े भारी कवि थे। इस कुल में इन्हीं तक कविता रही। पीछे जो रामदीन, शीतल इत्यादि हुए, वे सामान्य कवि थे।" पृष्ठ २७६ पर इन कवि के चार छंद भी उद्धृत किए गए हैं। शिवसिंहजी ने बिहारीलाल का जो उत्पत्ति-काल माना है, वह अशुद्ध है। आगे का वर्णन पढ़ने स यह बात स्पष्ट हो जायगी। बिहारीलालजी चरखारी के महाराज विक्रमादित्य के राजकवि थे। इन नृपति का शासन-काल १८५५ से १८८५ तक रहा है। यह स्वयं कवि थे। इन्होंने विक्रम-सतसई नाम की एक कविता-पुस्तक लिखी थी। बिहारीलाल ने इस पुस्तक पर रस-चंद्रिका नाम की एक टीका लिख डाली। इस टीका-ग्रंथ में उन्होंने अपना परिचय इस प्रकार दिया है—

"बसत त्रिबिकमपुर-नगर कालिंदी के तीर;
बिरच्यो भूप हमीर जनु मध्य देस को हीर।