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समीक्षा

  भावसिंहजी-विषयक मतिराम के छंदों की संख्या 'ललित ललाम' में ६० है। कवि के वर्णनों और इतिहास को मिलाने से यह बात प्रमाणित होती है कि मतिराम का वर्णन प्रायः संतोषप्रद है। मतिरामजी ने भावसिंहजी को जैसा कुछ दिखलाया है-उनके वर्णनों में जहाँ-जहाँ ऐतिहासिक तथ्य हैं, उनका विवेचन हम आगे चलकर करेंगे।

राव भावसिंह (संवत् १७१५-१७३८)

शत्रुशाल के पुत्र भावसिंह इस संसार में हिंदुओं की ढाल के समान थे। मुसलमानी मत का ऐसा प्रबल तिमिर छाया हुआ था कि श्रुति-धर्म-पथ के पथिकों को मार्ग ही नहीं सुझाई पड़ता था। ऐसे समय में भावसिंह का उदय दिनकर के समान हुआ। वह सच्चे बलाबंध-पति थे। शांति और युद्ध, दोनो में ही उनका समान भाव से यश था। शांति में उनके दान की चर्चा थी, तो युद्ध में कृपाण की। सुकवि मतिराम ने इन्हीं भावसिंह की प्रसन्नता के लिये 'ललित-ललाम'-ग्रंथ की रचना कर डाली*[] । प्रचंड मार्तंड के उदय होने पर तालाबों का जल सूख जाता है। किसी विशेष गहरे जलाशय में ही उसकी स्थिति रह जाती है। दिल्लीश्वर औरंगजेब के आतंक के सामने इसी प्रकार से सारे राजों की बहादुरी भाग गई थी। वह


  1. * ललितललाम के छंद-नं॰७४, ७५, ७६, ७७, ७८, ८१, ८७, ८९, ९२, ९४, ९६, ९८, १००, १०२, १०४, १०६, १०९, १११, ११२, ११५, ११७, ११९, १२०, १३५, १३८, १४६, १४९, १६०, १६१, १६३, १७०, १७२, १८१, १८४, १८८, १९०, १९२, १९७, १९९, २०७, २१४, २१६, २२२, २७९, २८३, २९२, २९४, ३००, ३०४, ३०६, ३१०, ३१८, ३२०, ३७३, ४१६, ४२१, ४३३, ४४१ और ४४३ का सारांश।