घटनाएँ कभी पुरानी नहीं हो सकती हैं। उनका संबंध किसी समय-विशेष से नहीं है। वे सभी समय में जीती-जागती, नेत्रों के सामने नृत्य करती हुई, मौजूद हैं। माना कि ऐसी घटनाएँ थोड़ी हैं, पर कविता के लिये तो भरपूर उपयुक्त हैं। व्रज भाषा कविता में थोड़े विषयों पर बार-बार उन्हीं का वर्णन पाए जाने का यही रहस्य है। राधा-कृष्ण की लीलाओं के ही अधिक वर्णन पाए जाने का एक कारण तो प्रेम-भक्ति की रमणीयता है, तथा दूसरा यह कि वृंदावन के कृष्ण का जीवन गोप-जीवन की मनोरम झलक भी दिखलाता है। विद्वानों का मत है कि यह जीवन नितांत सरल, निर्दोष और कुटिलता-शून्य है। ऐसे जीवन का वर्णन कविता के लिये उत्कृष्ट विषय है। बस, व्रज-भाषा-काव्य में इसीलिये राधा-कृष्ण के बार-बार दर्शन मिलते हैं।
भाषा
कविता की भाषा में लचकीलापन, सामंजस्य पूर्ण भाषा प्रवाह एवं अलंकार-प्रस्फुटन की पात्रता होनी चाहिए। झटपट मतलब की बात तक पाठक को पहुँचा देना, वह भी सुंदरता के साथ तथा थोड़े शब्दों में, यह भी भाषा का एक विशेष गुण है। पर सबसे बड़ा गुण तो यह है कि भाषा ऐसी संपूर्ण होनी चाहिए कि कवि के भावों को पूरे प्रकार से प्रकट करने में समर्थ हो सके। कविता की भाषा में हृदय को द्रवीभूत करने की योग्यता भी होनी चाहिए। उसमें प्रसाद, ओज और माधुर्य के दर्शन होने चाहिए, तथा सरलता और सुष्ठु योजना का पूरा चमत्कार रहना चाहिए। शब्दों की तोड़-मरोड़ किसी हद तक क्षम्य है, पर उसकी अधिकता न होनी चाहिए। कविता उपयुक्त जैसी भाषा का ऊपर उल्लेख किया गया है, व्रज भाषा उसी कोटि की भाषा है।