पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/२०२

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मतिराम-ग्रंथावली - --- animashant.POOR mamianicompakiaurantestauraniuminormation - Nepriety PMIRRORDARDAN 3XE AISALMERASANSARuadirect गाए गीत आपने मुख सों, सुने तासु सुर टेरे; भिक्षुक-सम घर-घर तेहि खोजत मूरखता के चेरे । हिय घुसि ताको, रूप बिलोकौ छलकत अँसुवन मेरे; जीवन-धन, मम प्रान-पियारो सदा बसत हिय मेरे* ।" ( रवींद्रनाथ टैगोर ) ऊपर जो पद्य उद्धृत किया गया है, वह फ़टनोट में दिए अंग- रेज़ी-पद्य का टूटा-फूटा अनुवाद है। प्रेमी को प्राण-प्यारा सर्वत्र सुलभ हो रहा है। उसकी आँखों के सामने उसी की मूर्ति नाचती है । अपने ही गीतों में उसे प्यारे का प्यारा स्वर सुन पड़ता है। उसे इस स्वर के सुनने के लिये दूर जाने की ज़रूरत नहीं। अन्य लोग जो उसे इधर-उधर खोजते फिरते हैं, उन्हें वह हँसता है। उसका कथन है कि प्रेमी के हृदय में उसकी खोज करनी चाहिए । प्यारे की मूर्ति तो प्रेमी के आँसुओं में ही पाई जाती है। टैगोर महाशय ने प्रेम-तन्मयता का बड़ा ही सुंदर चित्र खींचा है, पर कविवर मतिराम

  • "My beloved is ever in my heart,

That is why I see him everywhere. He is in the pupils of my eyes, That is why I see him everywhere. I went far away to hear his own words, But, ah, it was vain ! When I came back I heard them _In my own songs. Who are you to seek him like a beggar from door to door ! Come to my heart and see his face in the tears of my eyes !" ( Rabindra Nath Tagore ) RA animation