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मतिराम-ग्रंथावली

जन्म में वह वनमाल होकर श्रीकृष्णचंद्र के हृदय से लगी रहे, और मुरली-रूप में उनके अधरों का स्पर्श करती हुई अधर-रस-पीयूष पान करे। दस्ताना-रूप में कपोल-स्पर्श से वनमाला और मुरली-रूप में हृदय-संलग्नता और अधर-रस-पान में निराला ही स्वाद है—

"होते रहै मन यों 'मतिराम', कहूँ बन जाय बड़ो तप कीजै;
ह्वै बनमाल हिए लगिए, अरु ह्वै मुरली अधरा-रस लीजै।"

महामति शेक्सपियर ने जूलियट की दशा का जो चित्र खींचा है, वह नितांत रमणीय अथच सराहनीय है। आश्चर्य की बात है कि ठीक ऐसा ही चित्र मतिराम ने भी बनाया है। पाठकगण दोनो ही चित्र साथ-साथ देखें।

"इस एकाकी नन्हे-से शरीर में नौका, समुद्र और तूफ़ान की अनुरूपता पाई जाती है। आँसुओं से परिपूरित और प्रवाहित नेत्र ही समुद्र हो रहे हैं। शरीर नौका के समान है, जो इस लावण्यमय जल में तैर रहा है। उसासों की आँधी से अश्रु और उनसे उसास परिपुष्ट होते हुए-विना शांति-व्यवधान के-जान पड़ता है, इस तूफ़ान के सताए शरीर को अभिभूत कर लेंगे*[]।"

(शेक्सपियर)


  1. *

    In on little body,
    Thou counterfeits a bark, a sea, a wind;
    For still thy eyes which I may call the sea,
    Do ebb and flow with tears; the bark thy body is
    Sailing in this salt flood; the winds, the sighs;
    Who,—raging with thy tears, and they with them
    Without a sudden calm, will overset
    Thy tempest-tossed body.

    (Shakespeare)