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मतिराम-ग्रंथावली

घटनाएँ बहुत ही महत्त्व-पूर्ण होती हैं। पहली घटना उसका जन्म- दिन, दूसरी विवाह-दिन तथा तीसरी मृत्यु तिथि है। जन्म-दिन वास्तव में बड़ी ही महत्त्व-पूर्ण घटना है, पर विवाह और मृत्यु से उसके भाग्य पर जैसी मोहर बैठती है, वैसी और किसी घटना से नहीं। विवाह में केवल उन्हीं दो व्यक्तियों का आनंद नहीं लिपटा है, जो विवाह सूत्र में बद्ध हुए हैं, वरन् कम-से-कम किसी हद तक तो बहुत-से संबंधियों के आनंद और सुविधाओं पर भी प्रभाव पड़ता है। इतना ही क्यों, अब तक अनुत्पन्न भविष्य की एक पीढ़ी का भाग्य और आनंद भी इसी घटना पर अवलंबित है।"

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[]*"विवाह के बाद पुरुष की जीवन-यात्रा केवल अपने लिये नहीं है, वरन् अपनी स्त्री और बच्चों के लिये अथवा व्यापक अर्थ में यों कहिए कि जाति-हित की दृष्टि से अपने उत्तराधिकारियों के लिये है। अपनी आत्मीयता को वह दूसरों को इस प्रकार से सौंपता है


in many three—the day of one's birth, the day of one's marriage, and the day of one's death. The day of one's birth is surely very important event but the day of his marriage and the day of his death seal his destiny as no other events could possibly do. Marriage not only envolves the happiness of those who enter upon this sacred contract but, at least to some extent it affects the happiness and comfort of a large circle of relatives and envolves the happiness and destiny of a generation yet unborn.

  1. *He is no longer to live for himself, but for his wife and children and in a larger sense for his descendants-for the good of the race. He is to continue by