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समीक्षा

पोंछने के काम पर भी रहती थीं, इधर आँसू बहे नहीं, और उधर उन्होंने पोंछे नहीं। अतएव अश्रु-जल को छूने का उन्हें सदा अवसर रहता था। यह भी कहा जाता है कि ठंडे और गर्म दो प्रकार के आँसू बहते हैं। इनमें से एक प्रकार के आँसू सुख के तथा दूसरे प्रकार के दुःख के परिचायक हैं। सखी बराबर आँसू पोंछती रही है। इसलिये किसके आँसू गर्म हैं तथा किसके ठंडे, यह बात वह जान सकती है। अतः उसका कहना कि अमुक के आँसू सुख के और अमुक के दुख के हैं, अनुचित नहीं कहा जा सकता। एक तो यह गंभीर भाव है। पर इसके अतिरिक्त 'सखि यह रूप लखै न' का अर्थ यह भी तो हो सकता है कि सखी इस रूप को लख नहीं पाती। वह नहीं जान पाती कि वास्तव में दुःख से कौन रो रहा है, तथा सुख से कौन? यह अर्थ मानते समय दोहे को कवि की उक्ति मानना होगा।

हमने दोनो पक्षों का कथन पाठकों के सामने रख दिया।

(३)

"मोहिं पठाई कुंज मैं, सठ आयो नहिं आपु;
आली, औरौ मीत कौ मेरो मिट्यो मिलापु।"

यह गणिका विप्रलब्धा का उदाहरण है। आक्षेप यह है कि इसमें गणिकात्व किस बात से पाया जाता है? कोई कुलटा भी तो एक यार के न मिलने पर दूसरे यार से मिलाप न हो सकने का खेद इसी प्रकार प्रकट कर सकती है। फिर इसे गणिका विप्रलब्धा क्यों मानें? दूसरे पक्ष का कथन है कि यदि कुलटा होती, तो तुरंत आली (सखी) से अन्य पुरुष से मिलन कराने को कहती। पर उसने ऐसा नहीं किया। उसे अपने और मित्र न मिलने का ही दुःख अधिक हुआ है। यह दूसरा मित्र और कोई नहीं, केवल 'धन' है। बस, मित्र धन का अभिप्राय होने से गणिकात्व सूचित हो जाता है। दोनो पक्षों के मत सामने हैं। निर्णय स्वयं पाठक कर लें।