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भ्रमरगीत-सार
श्रीकृष्ण का वचन उद्धव-प्रति
राग सारंग

पहिले करि परनाम नंद सों समाचार सब दीजो।
और वहाँ वृषभानु गोप सों जाय सकल सुधि लीजो॥
श्रीदामा आदिक सब ग्वालन मेरे हुतो[१] भेंटियो।
सुख-संदेस सुनाय हमारो गोपिन को दुख मेटियो॥
मंत्री इक बन बसत हमारो ताहि मिले सचु[२] पाइयो।
सावधान ह्वै मेरे हूतो ताही माथ नवाइयो॥
सुन्दर परम किसोर बयक्रम चंचल नयन बिसाल।
कर मुरली सिर मोरपंख पीताम्बर उर बनमाल॥
जनि डरियो तुम सघन बनन में ब्रजदेवी रखवार।
बृन्दावन सो बसत निरंतर कबहुँ न होत नियार[३]
उद्धव प्रति सब कही स्यामजू अपने मन की प्रीति।
सूरदास किरपा करि पठए यहै सकल ब्रज रीति॥१॥


राग सोरठ
कहियो नन्द कठोर भए।

हम दोउ बीरै[४] डारि पर-घरै मानो थाती सौंपि गए॥
तनक तनक तैं पालि बड़े किए बहुतै सुख दिखराए।


  1. हुतो=ओर से, तरफ से।
  2. सचु=सुख।
  3. नियार=न्यारे, अलग।
  4. बीर=भाई।