पृष्ठ:भ्रमरगीत-सार.djvu/३

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ये इस प्रकार छपे हैं––

(क) अलि मलीन बृषभानुकुमारी।
अधोमुख रहत ऊरध नहिं चितवत ज्यों गथ हारे थकित जुथअरी॥
(ख) मग ज्यों सहत सहज सरदारन सनमुख तें न टरै।
समुझि न परै कवन सच पावत जीवत जाइ मरै॥

इस संग्रह में भ्रमरगीत के चुने हुए पद रखे गए हैं। पाठ, जहाँ तक हो सका है, शुद्ध किया गया है। कठिन शब्दों और वाक्यों के अर्थ फुटनोट में दे दिए गए हैं। सूरदास जी पर एक आलोचनात्मक निबंध भी लगा दिया गया है, जिसमें उनकी विशेषताओं के अन्वेषण का कुछ प्रयत्न है।

गुरुधाम, काशी
श्रीपंचमी, १९८२

रामचन्द्र शुक्ल


विषय-क्रम सूची
१. वक्तव्य ⁠ ... १—२
२. महाकवि सूरदासजी (आलोचना) १—७७
३. भ्रमरगीत-सार ⁠ ... १—१५५
४. चूर्णिका (अंत में) १—१३