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भ्रमरगीत-सार
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जोहति पंथ मनावति संकर बासर निसि मोहिं गनत गई।
पाती लिखत बिरह तन व्याकुल कागर[] ह्वै गयो नीरमई॥
ऊधो! मुख के बचनन कहियो[] हरि सों सूल नितप्रतिहि नई।
सूरदास प्रभु तुम्हरे दरस को बियोगिनि बिकल भई॥३६७॥


राग धनाश्री

फूल बिनन नहिं जाउँ सखी री! हरि बिन कैसे बीनौं फूल।
सुन री, सखी! मोहिं रामदोहाई फूल लगत तिरसूल॥
वे जो देखियत राते राते फूलन फूली डार।
हरि बिन फूल झार[] से लागत झरि झरि परत अँगार॥
कैसे कै पनघट जाउँ सखी री! डोलौं सरिता-तीर।
भरि भरि जमुना उमड़ि चली है इन नैनन के नीर॥
इन नैनन के नीर सखी री! सेज भई घरनाउ[]
चाहति हौं याही पै चढ़िकै स्याम-मिलन कों जाउँ॥
प्रान हमारे बिन हरि प्यारे रहे अधरन पर आय।
सूरदास के प्रभु सों सजनी कौन कहै समुझाय?॥३६८॥


राग बिहागरो

ऊधो जू! मैं तिहारे चरनन लागौं बारक या ब्रज करबि भाँवरी।
निसि न नींद आवै, दिन न भोजन भावै, मग जोवत भई दृष्टि झाँवरी॥
बहै बृंदावन स्याम सघन बन, बहै सुभग सरि साँवरी।
एक स्याम बिनु स्याम न भावै सुधि न रही जैसे बकत बावरी॥


  1. कागर=कागज।
  2. बचनन कहियो=इससे जबानी ही कहना।
  3. झार=अग्नि की ज्वाला।
  4. घरनाउ=घड़नई, बाँस में उलटे घड़े बाँधकर बनाई हुई नाव।