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भ्रमरगीत-सार
 


राग नट

कहत कत परदेसी की बात?
मंदिर-अरध-अवधि[] बदि हम सों, हरि-अहार[] चलि जात॥
ससि-रिपु[] बरष सूर-रिपु[] युग वर, हर-रिपु[] किए फिरै घात।
मघ-पंचक[] लै गए स्यामघन, आय बनी यह बात॥
नखत, बेद, ग्रह जोरि अर्द्ध करि[] को बरजै हम खात।
सूरदास प्रभु तुमहिं मिलन कों कर मीड़ति पछितात॥३६५॥


राग धनाश्री

उधो! मन माने की बात।
दाख छुहारा छाँड़ि अमृत-फल विष-कीरा विष खात।
जौ चकोर को दै कपूर कोउ तजि अंगार अघात?
मधुप करत घर कोरि[] काठ में बँधत कमल के पात॥
ज्यों पतंग हित जानि आपनो दीपक सों लपटात।
सूरदास जाको मन जासों सोई ताहि सुहात॥३३६॥


राग विलावल
कर-कंकन तें भुज-टाँड़[] भई।
मधुवन चलत स्याम मनमोहन आवन-अवधि जो निकट दई॥


  1. मंदिर-अरध-अवधि=मंदिर, घर, उसका आधा भाग पाख अर्थात् एक पाख या पक्ष की अवधि।
  2. हरि अहार=मांस, महीना।
  3. ससि-रिपु=दिन अर्थात् दिन एक वर्ष के समान बीतता है।
  4. सूर-रिपु=रात।
  5. हर-रिपु=कामदेव।
  6. मघ-पंचक=मघा से लेकर पाँचवाँ नक्षत्र चित्रा अर्थात् चित्त।
  7. नखत वेद...करि=नक्षत्र २७, वेद ४, ग्रह ९ जोड़ने से ४० आया; उसका आधा हुआ बीस अर्थात् विष।
  8. कोरी= कुरेदकर, फुतरकर।
  9. टाँड़=बाहु में पहनने का एक गहना (कृशता-वर्णन)।