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भ्रमरगीत-सार
राग नट
राग धनाश्री
उधो! मन माने की बात।
दाख छुहारा छाँड़ि अमृत-फल विष-कीरा विष खात।
जौ चकोर को दै कपूर कोउ तजि अंगार अघात?
मधुप करत घर कोरि[८] काठ में बँधत कमल के पात॥
ज्यों पतंग हित जानि आपनो दीपक सों लपटात।
सूरदास जाको मन जासों सोई ताहि सुहात॥३३६॥
राग विलावल
कर-कंकन तें भुज-टाँड़[९] भई।
मधुवन चलत स्याम मनमोहन आवन-अवधि जो निकट दई॥
- ↑ मंदिर-अरध-अवधि=मंदिर, घर, उसका आधा भाग पाख अर्थात् एक पाख या पक्ष की अवधि।
- ↑ हरि अहार=मांस, महीना।
- ↑ ससि-रिपु=दिन अर्थात् दिन एक वर्ष के समान बीतता है।
- ↑ सूर-रिपु=रात।
- ↑ हर-रिपु=कामदेव।
- ↑ मघ-पंचक=मघा से लेकर पाँचवाँ नक्षत्र चित्रा अर्थात् चित्त।
- ↑ नखत वेद...करि=नक्षत्र २७, वेद ४, ग्रह ९ जोड़ने से ४० आया; उसका आधा हुआ बीस अर्थात् विष।
- ↑ कोरी= कुरेदकर, फुतरकर।
- ↑ टाँड़=बाहु में पहनने का एक गहना (कृशता-वर्णन)।