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भ्रमरगीत-सार
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ज्यों जलहीन मीन-तन तलफत त्योंहि तपत ब्रजबालहि।
सूरदास प्रभु बेगि मिलावहु मोहन मदन-गोपालहि॥२९३॥
राग केदारो
राग मलार
हरि परदेस बहुत दिन लाए।
कारी घटा देखि बादर की नैन नीर भरि आए॥
पा लागौं तुम्ह, बीर बटाऊ! कौन देस तें धाए।
इतनी पतिया मेरी दीजौ जहाँ स्यामघन छाए॥
दादुर मोर पपीहा बोलत सोवत मदन जगाए।
सूरदास स्वामी जो बिछुरे प्रीतम भए पराए॥२९५॥
आजु घन स्याम की अनुहारि।
उनै आए साँवरे, ते सजनी! देखि रूप की आरि॥
इंद्रधनुष मनो नवल बसन छवि, दामिनि दसन बिचारि।
जनु बगपाँति माल मोतिन की, चितवत हितहि निहारि॥
गरजत गगन, गिरा गोबिंद की सुनत नयन भरे बारि।
सूरदास गुन सुमिरि स्याम के बिकल भईं ब्रजनारि॥२९६॥