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भ्रमरगीत-सार
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जुवतिन कहत जटा सिर बांधहु तो मिलिहैं अबिनासी॥
तुमको जिन गोकुलहिं पठायो ते बसुदेव-कुमार।
सूर स्याम मनमोहन बिहरत ब्रज में नंददुलार॥१५८॥


राग सोरठ
स्याम विनोदी रे मधुबनियाँ।

अब हरि गोकुल कांहे को आवहिं चाहत नवयौवनियाँ॥
वे दिन माधव भूलि बिसरि गए गोद खिलाए कनियाँ।
गुहि गुहि देते नंद जसोदा तनक कांच के मनियाँ[]
दिना चारि तें पहिरन सीखे पट पीतांबर तनियाँ[]
सूरदास प्रभु तजी कामरी अब हरि भए चिकनियाँ[]॥१५९॥


राग धनाश्री
ऊधो! हम ही हैं अति बौरी।

सुभग कलेवर कुंकुम खौरी। गुंजमाल अरु पीत पिछौरी॥
रूप निरखि दृग लागे ढोरी[]। चित चुराय लयो मूरति सो, री!
गहियत सो जा समय अंकोरी[]। याही तें बुधि कहियत बौरी॥
सूर स्याम सों कहिय कठोरी! यह उपदेस सुने तें बौरी॥१६०॥


कहाँ लगि मानिए अपनी चूक?

बिन गोपाल, ऊधो, मेरी छाती ह्वै न गई द्वै टूक॥
तन, मन, जौबन वृथा जात है ज्यों भुवंग की फूँक।
हृदय अग्नि को दवा बरत है, कठिन बिरह की हूक[]


  1. मनियाँ=गुरिया।
  2. तनियाँ=तनी, कुरती।
  3. चिकनियाँ=छैला।
  4. ढोरी लागे=सँग लगे, पीछे हो लिए।
  5. अंकोरी=गोद।
  6. हूक=ज्वाला, व्यथा, शूल।