बिरहिनि बिरह भजै पा लागों तुम हौ पूरन-ज्ञान।
दादुर जल बिनु जियै पवन भखि, मीन तजै हठि प्रान॥
बारिजबदन नयन मेरे पटपद कब करिहैं मधुपान?
सूरदास गोपीन प्रतिज्ञा, छुवत न जोग बिरान[१]॥११४॥
तुम हमको उपदेस करत हौ भस्म लगावन आनन॥
औरों सब तजि, सिंगी लै लै टेरन, चढ़न पखानन।
पै नित आनि पपीहा के मिस मदन हनत निज बानन॥
हम तौ निपट अहीरि बावरी जोग दीजिए ज्ञानिन।
कहा कथत मामी के आगे जानत नानी नानन॥
सुन्दरस्याम मनोहर मूरति भावति नीके गानन।
सूर मुकुति कैसे पूजति[२] है वा मुरली को तानन?॥११५॥
ऊधो, हम अजान मतिभोरी।
जानति हैं ते जोग की बातें नागरि नवल किसोरी॥
कंचन को मृग कौनै देख्यौ, कोनै बाँध्यो डोरी?
कहु धौं, मधुप! बारि मथि माखन कौने भरी कमोरी[३]?
बिन ही भीत चित्र किन काढ्यो, किन नभ बाँध्यो झोरी?
कहौ कौन पै कढ़त कनूकी[४] जिन हठि भूसी पछोरी॥
यह ब्यवहार तिहारो, बलि बलि! हम अबला मति थोरी।
निरखहिं सूर स्याम-मुख चंदहि अँखिया लगनि-चकोरी॥११६॥