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भ्रमरगीत-सार
 


राग मलार
काहे को गोपीनाथ कहावत?

जो पै मधुकर कहत हमारे गोकुल काहे न आवत?
सपने की पहिंचानि जानि कै हमहिं कलंक लगावत।
जो पै स्याम कूबरी रीझे सो किन नाम धरावत?
ज्यों गजराज काज के औसर औरै दसन दिखावत[१]
कहन सुनन को हम हैं ऊधो सूर अंत[२] बिरमावत॥४५॥


अब कत सुरति होति है, राजन्?

दिन दस प्रीति करी स्वारथ-हित रहत आपने काजन॥
सबै अयानि भईं सुनि मुरली ठगी कपट की छाजन।
अब मन भयो सिंधु के खग ज्यों फिरि फिरि सरत जहाजन॥
वह नातो टूटो ता दिन तें सुफलकसुत-सँग भाजन।
गोपीनाथ कहाय सूर प्रभु कत मारत हौ लाजन॥४६॥


राग सोरठ
लिखि आई ब्रजनाथ की छाप[३]

बाँधे फिरत सीस पर ऊधो देखत आवै ताप॥
नूतन रीति नंदनंदन की घरघर दीजत थाप।
हरि आगे कुब्जा अधिकारी, तातें है यह दाप॥
आए कहन जोग अवराधो अबिगत-कथा की जाप।
सूर सँदेसो सुनि नहिं लागै कहौ कौन को पाप? ॥४७॥


  1. ज्यों गजराज......दिखावत=(कहावत) हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और।
  2. अन्त=अनत, अन्यत्र।
  3. छाप=चिह्न, मुहर।