चाह को । बीजापुर गोलकुंडा जीत्यो लरिकाइ ही में ज्वानी आए जीत्यो दिलीपति पातसाह को ॥ दोहा दच्छिन के सब दुग्ग जिति दुग्ग सहार विलास । सिव सेवक सिव गढ़पती कियो रायगढ़ बासे ।। १४ ।। अथ रायगढ़ वर्णन मालती सवैयाँ जा पर साहि तनै सिवराज सुरेस कि ऐसि सभा सुभ साजै । यो कवि भूपन जंपत है लखि संपति को अलकापति .लाजै ॥जा मधि तीनिहु लोक कि दीपति ऐसो बड़ो गढ़राय, १ राजगढ़ को शिवानी ने म्होरवुध पहाड़ी पर १६४७ ई० में वसाया था और १६६५ में उन्हें वह जयसिंह को दे देना पड़ा। शिवाजो के पश्चात् मरहठों ने इसे १६६२ ई० में फिर से जीत लिया। सन् १६६२ ई० में शिवाजी ने राजगढ़ छोड़ कर रायगढ़ को अपना वासस्थान बनाया। यह कदाचित् रायगढ़ हो का वर्णन है-भूमिका देखिए । यही शिवाजी अंत तक रहे । २ इसमें सात भगण और दो अंतिम अक्षर गुरु होते हैं। इसका रूप यह है ("मुनिभगग" Susus||SISISISiss )। मगण में एक गुरु और दो लघु अक्षर होते हैं । कड़ाई से देखने पर बहुत कम सवैया शुद्ध निकलेंगी; परन्तु छंद बिगड़ने में गुरु अक्षर को मी मृदु उच्चारण से लघु करके पढ़ लिया नाता है। ३ नपता है, वार बार कहता है।
पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/९७
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।