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भूषणग्रंथावली DOM शिवराज-भूषण मंगलाचरण कवित्त शुद्ध घनाक्षरी अथवा मनहरण' विकट अपार भव पंथ के चले को स्रम हरन करन विजना 'से ब्रह्म ध्याइए । यहि लोक परलोक सुफल करन कोकनद से चरन हिए आनि कै जुड़ाइए ।। अलि कुल कलित कपोल, ध्यान ललित, अनंद रूप सरित मैं भूपन अन्हाइए । पाप तरु भंजन विघन गढ़ गंजन जगत मनरंजन द्विरदमुख गाइए ॥ १ ॥ १ यह उस दंडक का नाम है जिसमें इकतीस वर्ण होते हैं, लघु गुरु का कोई कम नहीं होता, केवल अंतिम वर्ण अवश्य गुरु होता है, जिसमें सोलहवें वर्ण पर प्रथम यति होती है और अंत के वर्ण पर द्वितीय । देवजी के मतानुसार १४ वे अथवा १५ वें वर्ण पर भी यति हो सकती है, पर वे मध्यम एवं अधम यतियाँ हैं।