[ ७५ ] . साधारणतः यों लिखा करते थे कि "वह कुत्ता खाँ साहब से पूना में लड़ा", "उस कुत्ते ने” अमुक स्थान पर अमुक खाँ साहब से लड़कर पराजय पाई । "उस कुत्ते ने” फलाँ साहब सूवा को बड़ी बहादुरी से लड़ कर पराजित किया। मुसलमान इतिहास-लेखकों ने एक महारानी तक के विषय में लिखा है कि "उस स्थान के कुल कुत्ते उस कुतिया पर बड़ी भक्ति रखते थे"। इस प्रकार के वर्णन ईलियट-कृत मुसलमान समय के इतिहास के मुसलमानी इतिहासों के उल्थाओं में प्रायः पाए जायँगे। जब उस काल के इतिहास लेखक ऐसे सभ्य थे, तब कवियों से कोई कहाँ तक आशा कर सकता है ? भूपणजी की कविता में जहाँ देखिए, शिवाजी की विजयों से हिंदुओं का प्रभुत्व बढ़ता देख पड़ता है। जिन दो एक हिंदुओं से शिवाजी का युद्ध भी हुआ, उनके विपय में इन्होंने यही कहा कि “हिंदु बचाय बचाय यही अमरेस चॅदावत लौ कोउ टूटै"। शिवाजी ने राजा जयसिंह से युद्ध न करके अपनी हार मान ली और उन्हें अपने कुछ गढ़ दिए; परंतु युद्ध करके हिंदू-खून नहीं बहाया। इस पर यद्यपि शिवाजी की पराजय हुई, तथापि भूपण की राय में उसका यश वर्द्धित हुआ। __"तै जयसिंहहिं गढ़ दिये शिव सरजा जस हेत"। फिर यद्यपि शाहजी मुसलमानों के नौकर थे, तथापि इन्होंने उनके राजपद की प्रशंसा न करके उन्हें- “साहस अपार हिंदुवान को अधार धीर सकल सिसौ.
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