[ ६७ ] १८९, २१५, २२६, २४७, २५४, २६६, ३३६, ३४०, ३५१, ३५४, से ३५९ तक, ३६०, ३६१, ३६४, शिवावावनी में छंद नंवर २, ३, '६, ८, २६, ३७, ३८, ४०, ४२, ४३, ४५, ४८, छत्रसालदशक के 'छंद नंबर १, ३, ४,८। । भूपणजी ने कुल मिलाकर दस प्रकार के छंद लिखे हैं जिनके नाम नीचे लिखे जाते हैं। शिवराज भूपण के जिस नंबर के छंद के नोट में छंद विशेष का लक्षण दिया है, उसका व्योरा त्रैकेट में यहाँ लिख दिया गया है। छंदों के नाम ये हैं मनहरण ( १ ), छप्पय (२), दोहा (३), मालती सबैया (१५), हरिगीतिका (१६), लीलावती (१३६), किरीटी सवैया (३२०), अमृतध्वनि ( ३५४ ), माधवी सवैया ( ३६८), और गीतिका ( ३७१ )। भूपण ने अपने ग्रंथों का मुख्यांश मालती सवैया और मनहरण में लिखा है। अलंकारों के लक्षण ये दोहे में लिखते थे। छप्पय भी कुछ अधिकता से पाए जाते हैं। शेप छंदों का प्रयोग बहुत कम हुआ है। उस समय के कवियों में इसी प्रकार के छंद लिखने का कुछ नियम सा पड़ गया था, जो प्राचीन प्रणाली के कवियों में आज तक चला आता है। भूषणजी पदांत में विश्राम चिह्न रहित छंद बहुत कम लिखते थे; परंतु शि० भू० के छंद नंवर ३४९, ३६३ में ऐसा हुआ है। इसी को अंगरेजी में Run-on-line कहते हैं। भूपण की कविता में विश्राम चिह्नों पर विशेष ध्यान देना चाहिए। कोई कोई छंद
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