स्फुट काव्य — इसमें भूपण के ५४ छंद (जो हमें मिले ) लिखे गए हैं। इसमें कोई ऐतिहासिक क्रम नहीं रक्खा गया है; क्योंकि प्रथम नंबर पर शिवाजी की प्रशंसा का छंद रखना हमें भला मालूम पड़ा। इन छंदों के विषय में विशेष हमें कुछ वक्तव्य नहीं है। जैसे प्रभावपूरित भूपणजी के और छंद हुआ करते हैं, वैसेही ये भी हैं। स्फुट काव्य के संबंध में हमें केवल निम्नलिखित छंद पर विचार करना है- मालती सवैया वालपने में तहौवरखान को सैन समेत अँचे गयो भाई । ज्वानी में रुंडी औ खुंडी हने त्यों समुद्र अँचै कछु वार न लाई । वैस बुढ़ापे कि भूख बढ़ी गयो बंगस बंस समेत चबाई ।। खाये मलिच्छन के छोकरा पै तबी डोकरा को डकार न आई॥" यह छंद मुद्रित प्रतियों में भूपण के स्फुट छंदों में लिखा हुआ है। इसमें छत्रसाल का वर्णन है; क्योंकि तहौवरखाँ, समुद्र ( अब्दुस्सम्मद ) और बंगश से वेही तीस वर्प, चालीस वर्प और उन्नासी वर्ष की अवस्थाओं में क्रमशः लड़े थे। बंगश का युद्ध सन् १७२६ में हुआ था, सो यदि यह छंद भूषणकृत मानें तो उनकी पूरी अवस्था ९४ साल से कम नहीं मान सकते । अतः हमें कुछ संदेह है कि यह छंद भूपणकृत नहीं है। भूपणजी
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