[ ५७ ] हमारे भारतवर्ष में पृथ्वीराज के पश्चात चार स्वतंत्र राजे बड़े प्रभावशाली एवं पराक्रमी हुए, अर्थात् महाराज हम्मीर देव, महाराणा प्रतापसिंह, महाराज शिवाजी और महाराज रणजीत सिंह । इन सब में हम लोगों से दूरतम वासी शिवाजी ही थे; तथापि एतद्देशीय साधारण हिंदू समाज में सबसे अधिक प्रसिद्ध वे ही महाराज हैं । इस असाधारण प्रख्याति का कारण यही भूपण जी का ग्रंथ है। यद्यपि महाराज रणजीत सिंह के सब पीछे होने के कारण उनका नाम लोग यहाँ जानते हैं, तथापि उनकी भी विजय-यात्राओं का हाल यहाँ बहुत कम मनुष्यों पर विदित है; परंतु शिवाजी की लड़ाइयों का समाचार ग्राम ग्राम तथा घर घर पूछ लीजिए। • एक यह भी प्रश्न है कि "शिवराज-भूपण" कब समाप्त हुआ । छंद नं० ३८० में भूपणजी ने संवत् १७३० बुध सुदि १३ को इसका समाप्त होना लिखा है। हमारी प्रार्थना पर महामहो- पाध्याय श्री पंडित सुधाकर जी ने १७३० का पूर्ण पंचांग बना- कर हमारे पास भेज दिया था जिसके लिये हम उनके अत्यंत कृतज्ञ हैं। इससे विदित होता है कि श्रावण और कार्तिक मास में शुक्ला त्रयोदशी वुधवार को उक्त संवत् में पड़ी थी। कार्तिक में १४ दंड ५५ पल वह तिथि बुध के दिन थी और श्रावण में ३६ दंड ४० पल। जान पड़ता है कि कार्तिक मास में ग्रन्थ समाप्त हुआ था, क्योंकि कुआर कार्तिक तक की घटनाएँ उसमें कथित हैं।
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