[ ५० ] (३) यह ग्रंथ इसी रूप में सक्रम नहीं बनाया गया है; क्योंकि यदि सन् १६६७ ई० से इसे भूपणजी लिखने लगते तो छंद नं०६६ व ९७ में ही सन् १६७३ का वर्णन कैसे आ जाता ? क्योंकि यदि यह मानिए कि सन् १६६७ से सन् १६७३ तक यह ग्रंथ सक्रम बनता रहा, तो यह भी मानना पड़ेगा कि सन् १६७३ में केवल अंत के प्रायः पचास छंद बने होंगे। इसी प्रकार और सव की भी दशा है । अतः यह ज्ञात होता है कि इस ग्रंथ के छंद सिलसिलेवार नहीं बनाए गए हैं। परंतु कुछ अंश में यह विचार यथार्थ भी है, जैसा कि आगे दिखाया जायगा। . (४) यह अनुमान भी ठीक नहीं जंचता । भूपण ने जिस समय जो ग्रंथ या छंद बनाया है, उसी समय की घटनाओं का वर्णन उसमें बाहुल्य से है और यही बात प्राकृतिक भी है । भूषणजी ने शिवराजभूषण के १२ छंदों में शिवाजी के आगरा- गमन का वर्णन किया है और इनमें से बहुतेरे छंद ग्रंथ के प्रारंभ में पाए जाते हैं । ग्रंथ के अंत में सन् १६७२ और १६७३ के वर्णन बहुतायत से हैं । यदि कहिए कि आगरा-गमन को भूषणजी बड़ी भारी बात समझते थे और इसी लिये उसका वर्णन अधिक है, तो इसका उत्तर यह है कि शिवाबावनी में इस घटना के दो ही छंद हैं। फिर बहलोल का युद्ध ऐसा बड़ा न था; परंतु उसके कई छंद भूषण जी ने लिखे हैं । सन् १६७३ की घटनाएं बड़ी भारी न थीं; परंतु उनका भी वर्णन अधिक है। इससे विदित होता है कि इस ग्रंथ के आदि का
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