पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/३६

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. [ २७.] कारतलव खाँ से युद्ध किया। सन् १६५८ में औरंगजेब अपने भाई दारा एवं मुराद को मरवा, शाह शुजा को अराकान भगा और अपने पिता शाहजहाँ को कारागार में डालकर राज्य करने लगा। सन् १६५९ में आदिल शाह ने शिवाजी से लड़ने को एक बड़ी सेना के साथ अफ़ज़ल खाँ को भेजा। इस पर संधि की बात चीत चली और यह स्थिर हुआ कि शिवाजी अफ़ज़ल खाँ से अकेले में मिले। इस अवसर पर अफ़ज़ल ने दग़ा करके शिवाजी पर कटार का वार किया। शिवाजी पहले ही से खाँ को मारना चाहते थे, सो उन्होंने खाँ की पसली लोहे के बने हुए शेर के पंजे से नोच ली और फिर गड़बड़ में खड्ग से उसे तथा उसके शरीररक्षक सैयद बंदा को मार डाला । फिर आपने उसकी सब सेना को भी परास्त किया। यह सुनकर उसी सन् में बीजापुराधीश ने रुस्तमेज़माँ को भेजा, परंतु इन से उसे भी परा• जित होना पड़ा। सन् १६६१ में इन्होंने शृंगारपुर को जीत लिया। १६६२ में ( अपने पिता शाहजी की सम्मति से ) इन्होंने रायगढ़ के को अपना निवासस्थान, स्थिर किया और राजगढ़ को

  • भूपणजी ने रायगढ़ का ही हाल लिखा है, परंतु उसका नाम राजगढ़ लिखा

हैं। शिवाजी सन् १६४७ से १६६२ तक राजगढ़ में रहे थे और १६६२ ई० से मरण पर्यंत (१६८०) रायगढ़ में। भूपणजो ने लिखा है कि शिवानी ने दक्षिण के सब दुर्ग जीतकर राजगढ़ में वास किया ( शि० भू० छंद नं० १४ )। फिर शिवराज भूषण ग्रंथ में राजगढ़ का वास वर्तमान काल में वर्णित है। यह ग्रंथ सन् १६६७ या १६६८ में प्रारंभ और सन् १६७३ में समाप्त हुआ था, जब शिवाना