पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/३०

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

[ २१ ] युक्तप्रांत के निवासी थे । आर्य काल में युक्त प्रांत भी मध्य देश कहलाता था। छंद मुक्तक मात्र है और किसी प्रामाणिक रीति से इसका भूषण-कृत होना सिद्ध नहीं किया गया है। यही छंद कुछ लोग 'भूधर' कवि का रचा बतलाते हैं। भूधर भगवंतराय के आश्रित भी थे। कुल वातों पर विचार करके भूपण का मृत्यु- काल सन् १७४० के लगभग बैठता है। सन् १६४९ में उत्पन्न होने वाले छत्रसाल को आप लाल छितिपाल अर्थात् लड़के कहते हैं, इससे तथा अन्य विचारों से हमने इनका जन्म-काल सन् १६३५ के इधर उधर माना है । खेद का विषय है कि भूषणजी के घरेलू चरित्रों से हम नितांत अनभिज्ञ हैं। इनके विवाह अथवा पुत्रों पुत्रियों एवं मित्रों के विषय में हम कुछ भी नहीं कह सकते। केवल इतना कह सकते हैं कि इनका विवाह अवश्य हुआ था और ये पुत्रवान् भी थे; क्योंकि सुना जाता है कि प्रसिद्ध दोहा- कार वृंद कवि एवं सीतल कवि इन्हीं के वंशधर थे; और तिकवा- पुर में जाँच करने से विदित हुआ कि जिला फतेहपुर एवं कहीं मध्य प्रदेश में भूपणजी के वंशज अब भी वर्तमान हैं। इसका ठोक पता कुछ भी नहीं है। नाती को हाथी दयो जापै ढुरकति ढाल । साहू के जस कलस पै ध्वज बाँधी छतसाल || इस छन्द में भूपण ने अपने नाती के मान का कथन किया है । भूपण महा- राज धनसंपन्न थे और बड़े आदमियों की भाँति रहते थे। देश भर में और राजा महाराजों के यहाँ इनका सदैव बड़ा मान रहा। इनकी कविता से इतना और भी ज्ञात होता है कि इन्होंने देशाटन