पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/२७९

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[ ४ ] का यह दूसरा खंड है। स्वामी विवेकानंद जी वेदांत दर्शन के 'पारदर्शी विद्वान् थे, अतः इस संबंध में उनके व्याख्यानों में जो विवेचन हुआ है, वह बहुत ही मार्मिक और मनोरंजक है । पृष्ठ- संख्या ३२६ के लगभग; मू० २॥) - [६] मुद्रा-शास्त्र . लेखक-श्रीयुक्त प्राणनाथ विद्यालंकार । ... हिंदी में मुद्रा-शास्त्र संबंधी यह पहला और अपूर्व ग्रंथ है। मुद्रा शास्त्र के अनेक अंग्रेज और अमेरिकन विद्वानों के अच्छे अच्छे ग्रंथों का अध्ययन करके इसका प्रणयन किया गया है। इसमें बतलाया गया है कि मुद्रा का स्वरूप क्या है, उसका विकास किस प्रकार हुआ है, उसके प्रचार के क्या सिद्धांत हैं, उत्तम मुद्रा के क्या कार्य हैं, मुद्रा के लक्षण और गुण क्या हैं, राशि-सिद्धांत “क्या है, उसका विकास किस प्रकार हुआ है, उसका क्रय-शक्ति पर क्या प्रभाव पड़ता है, मूल्य संबंधी सिद्धांत क्या हैं, मूल्य- सूची किसे कहते हैं और उसका क्या उपयोग होता है, द्विधातवीय मुद्राविधि का स्वरूप क्या है, उसके गुण और दोष क्या हैं, अप- 'रिवर्तनशील और परिवर्तनशील पत्र-मुद्रा के क्या क्या सिद्धांत और गुण दोष हैं, आदि आदि । पृष्ठ-संख्या ३२५ के लगभग; मूल्य २॥) .