पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/२६८

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. [ १७७ ] ... तेग बरदार स्याह, पंखाबरदार स्याह निखिल नकीव स्याह बोलत वेराह को। पान पीकदानी स्याह,' सेनापति मुखस्याह,, जहाँ तहाँ ठाढ़े गर्ने भूषन सिपाह को ।। स्याह भये सारी पातसाही, के अमीर खान, काहू को न रहो जोम' समर उमाह को। सिंह . सिवराज दल मुगल विनास करि घास ज्यों पजाखो आमखास . 'पातसाह को ।। ३६ ॥ . औरंग अठाना साह" सूरकी न मानै आनि, जबर जराना भयो जालम जमाना को । देवल डिगाना, रावराना मुरझाना अरु धरम ढहाना पनमेट्यो है पुराना को ।। कीनो घमसाना, मुगलाना को मसाना भरे, जपत जहाना जस मिरद बखाना को। साहिके सपूत मरदाना किरवाना गहि राख्यो है खुमाना बरवाना हिन्दु. वाना को ।। ३७ ॥ सिंहल के सिंह समरन सरजा की हाँक, सुनि चौंकि चलत . . , पान रक्खे रक्खे सूखकर स्याह हो गये, तथा पाकदानी में नया थूक न पड़ने. से पुराना सूखकर काला हो गया। २ घमंट। ३ उत्साह ४ जलाया-यथा, पजरे सहर माहि के बाँके।। ५ शेरशाह सूर ने हुमायु को नात कर शाहपद पाया था। वह हिन्दुओं से भी अच्छा सलूक करता था। ६ ज़बरदस्त तथा देश जलाने वाला । ७ मोगल राज्य को श्मशान में भर दिया !