पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/२६३

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[ १७२ ] जिन: किरनन मेरो अंग छुयो तिनही सों पिय अंगछुवै क्यों न मैन-दुख दाहे को। भूपन भनत तू तो जगत को भूपन है, हौं कहा सराहों ऐसे जगत सराहे को ॥ चंद-ऐसी चाँद- नी न प्यारै पै वरसि, उतैरहि न सकै मिलाप होय चित चाहे को । तू तो निसाकर सब ही को निसा करै, मेरी जो न निसा' करै तौ तू निसाकर काहे को ।। २३ ॥ कारो जल जमुना का काल सो लगत आली, मानो विष भयो रोम रोम कारे नाग को। तैसियै भई है कारी कोयल निगोड़ी यह, तैसोई भँवर सदा वासी बन-बाग को। भूपन कहत कारे कान्ह को वियोग हमें ऐसे में सँजोग कहँ वर अनुराग को। कारो घन घेरि-घरि माखो अब चाहत है, तापै तू भरोसो रो करत कारे काग को ॥ २४ ॥ हे निशाकर [ चन्द्र ], तू ने जिन अपनी किरणों से मेरे कामदेव से जले हुए अंग को छुआ है, उन्हों से प्रियतम के अंग को क्यों नहीं छूता ( जिससे उन्हें भी मेरे हो समान काम पीड़ा उत्पन्न हो और हम दोनों का वियोग दूर हो )? ___ २ हे चंद्र, ऐसो चंद्रिकाओं को प्यारे पर बरसाओ जिसमें कि वह विदेश में न रह सके और उस चितचाहे से मेरा मिलाप हो जाय । ३ निसा तसल्ली को कहते हैं । चन्द्रमा निसाकर [ निशाकर ] ही है और तसल्लो करनेवाला भी कहा गया है, क्योंकि वह निता [ तसलो, चित्त को प्रसन्नता कर (करनेवाला ) है। मतलब यह है कि तू सब को तसल्लो अवश्य करता है, किंतु यदि मेरो न करे तो मैं तुझे तसल्लो करनेवाला कैसे कहूँ ? निसा साधारण वोलचाल का शब्द है। उसकी अच्छी निसा खातरो हो गई, ऐसे वाक्य में इसका प्रयोग होता है।