[ १६५ ] अकवर पायो भगवन्त के तनै सों मान बहुरि जगतसिंह महा मरदाने सों । भूपन त्यों पायो जहांगीर महासिंह जू सों साहिजहाँ पायो जयसिंह जग जाने सों ।। अव अवरंगजेब पायो रामसिंह जू सों और दिन दिन पैहै कूरम के माने सों । कैत राजा राय मान पावै पातसाहन सों पाऐं पातसाहमान मान के घराने सों ॥९॥ ___ भले भाई भासमान त्रासमान भान जाको भानता भिखारिन के भूरि भय जात है । भोगन को भोगी, भोगीराज' कैसी भाँति भुजा भारी भूमि भार कै उतारन को ख्याल है ।। भावतो समान भूमि भावती को भरतार भूषन भरत खंड भरत भुवाल है। विभौ को भँडार औ भलाई को भवन भासै भाग भरो भाल जयसिंह भुवपाल है ॥ १० ॥ बाजे बाजे राजे तँ निवाजे हैं नजरि किये, बाजे बाजे राजे काटे काढ़ि असिमत्ता सों। बाँके बाके सूबा नालबन्दी दै सलाह करें, वाजे बाजे सूवा करे एक एक लला सों ॥ बाजे गाढ़े गढ़पति काटे रामद्वार दै दै बाजे गाढ़े गढ़पति आने तरे कत्ता सों। बाजीराव गाजी तें उवायो आप छत्रसाल आमित विठायो बल करि के चकत्ता सौ ॥ ११ ।। १ शेप; सर्पराज । २ समझ पड़ता है कि नालबन्दी के नाम से कोई खिराज लिया जाता था। ३ रॉम का द्वार दे देकर काटा अर्थात राम के यहाँ ( उस लोक को ) भेज दिया। ४ बंगश नवाब के दरेरे से वाजीराव ने जो छत्रसाल को बचाया था उसका वर्णन है।
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