[ १६ ] शिवाजी कृत सम्मान का ध्यान कर उनकी पालकी का डंडा स्वयं अपने कंधे पर रख लिया। तव तो भूपणजी अत्यंत प्रसन्न हो चट पालकी से कूद पड़े और "वस महाराज ! वस" कहते हुए दशक के संभवतः छंद नं०४ व ५ एवं दो चार अन्य कवित्त, जो अप्राप्य हैं, तत्काल पढ़े होंगे। छंद नं०३ में उन्होंने छत्रसाल जी को "लाल छितिपाल"क्या ही ठीक कहा है, क्योंकि उन महाराज की अवस्था उस समय केवल २४, २५ साल की थी। वैसे ही छंद नं० ४ व ५ में भी किसी घटना विशेप की बात न कहकर यों ही छत्रसालजी की प्रशंसा की गई है। छत्र- साल ने तब तक कोई ऐसी बड़ी लड़ाई नहीं जीती थी जो सलहेरि परनालो इत्यादि युद्धों के द्रष्टा और वर्णनकर्ता भूषणजी की निगाह में जंचती। बुंदेला महाराज की उस समय भूपणजी ने छत्रसाल हाड़ा (महाराज यूँदी) से तुलना करके भी मानो प्रशंसा ही की है। क्योंकि तब तक वास्तव में वे ५२ युद्धों में सम्मिलित रहने और लड़नेवाले वीरवर हाड़ा महाराज के बराबर कदापि न थे, यद्यपि आगे चल कर बूंदीनरेश से बहुत अधिक बढ़ गए । ___कुछ दिन अपने घर रहकर भूपणजी ने कमाऊँ महाराज के यहाँ जाकर स्फुट छंद नं० ६ पढ़ा । महाराज ने समझा कि भूपणा- जी के सम्मान की जो बातें शिवाजी के संबंध में उन्होंने सुनी, वे शायद ठीक न होंगी। सो वे कविजी की वैसी खातिर बात किए बिना ही उन्हें एक लक्ष रुपए का दान देने लगे । तव भूपण- जी ने कहा कि अब रुपए की चाह नहीं; हम तो केवल यह देखने
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