[ १५८ ] रैया राय चंपति को चढ़ो छत्रसालसिंह भूपन भनत सम- सेर जोम जमर्के । भादों की घटा सी उठी गरदै गगन धेरै सेलें समसेर फेरै दामिन सी दमके ॥ खान उमरावन के आन राजा रावन के सुनि सुनि उर लागें धन कैसी घमके । वैहर' वगारन की अरि के अगारन की नाँघती पगारन नगारन की धमकै ॥ ५॥ · अत्र गहि छत्रसाल खिझ्यो खेत वेतवै के उत ते पठाननहू कीन्हीं झुकि झपटें । हिम्मति बड़ी के गवड़ी" के खिलवारन लौं देत सै हजारन हजार वार चपटैं॥ भूपन भनत काली हुलसी असीसन को सीसन को ईस की जमाति जोर जपटैं। १ पूर्णोपमा अलंकार। २. वायु। ३ घेरा । ४ पूर्णोपमा अलंकार। ५ गबड़ो 'कवड्डी' एक प्रकार का खेल होता है । इसमें खिलाड़ो दो भागों में विभक्त हो जाते हैं। एक समूह का एक खिलाड़ो कबड्डी कबड्डी कहता दूसरे गोल में लाता है और यह प्रयत्न करता है कि उसको एक हो तौस न टूटने पावे और वह उस गोल के किसी खिलाड़ी को छुकर लौट आवे । अगर उसने ऐसा कर लिया तो उस गोल के जिस खिलाड़ी को उसने छुआ उसे मानों उसने मार डाला, नहीं तो स्वयं मर गया। दूसरे गोल वाले चाहते हैं कि उसे मार-डालें अर्थात् उसको एक साँस ढौल से तुड़वा दें, और एक साँस विना तोड़े उसे लौटने न दें। उसके पीछे दूसरे गोल का एक खिलाड़ी वैसा ही करता है। इसी प्रकार जब किसी गोल के सब खिलाड़ी मर जाते हैं, तो वह गोल हार जाता है । ६ महादेव जी । ७ चपेट करते हैं।
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